गिरते – सँभलते ही सीखा था चलना
ना बदलेंगे गिर के सम्भलनेका जज़्बा!
बनते, बिगड़ते बनी है ये दुनिया
की बनने से पहले बिगाड़ेगा क्या वोह?!|
गिरायेगा क्या वोह? पछाड़ेगा क्या वोह?
की गिर के पटक के बनें सख्त पथ्थर!
तराशा जो पथ्थर तो बनती है मूरत,
ना तोड़ें उसे तो तराशेगा क्या वोह?? |
मारेगा क्या वोह? मिटाएगा क्या वोह?
के मरनेसे मिटती नहीं है शहीदी !
शहीदों के खुनों से बनता है भारत
ना खौला अगर तो बहायेगा क्या वोह?|
हसते हँसाते रहें – ना-रहें हम
मगर तू ना करना जुदाई का एक ग़म;
मिलते बिछडते कटी जिंदगी है
कभी ना भूला, याद करने का जज़्बा!|
यह कुछ शब्द अपने वीर जवानों के नाम, जिनके सरहद पर डंटे रहने से हम सब चैन से सो सकते हैं|
हिंदी में लिखने का मेरा यह प्रथम प्रयास है, कुछ ग़लत लिखा गया है तो माफी चाहूंगा | आपकी समज और सहकार के लिए बहोत ही शुक्रिया|